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यु॒वं ह॑ घ॒र्मं मधु॑मन्त॒मत्र॑ये॒ऽपो न क्षोदो॑ऽवृणीतमे॒षे। तद्वां॑ नरावश्विना॒ पश्व॑इष्टी॒ रथ्ये॑व च॒क्रा प्रति॑ यन्ति॒ मध्व॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yuvaṁ ha gharmam madhumantam atraye po na kṣodo vṛṇītam eṣe | tad vāṁ narāv aśvinā paśvaïṣṭī rathyeva cakrā prati yanti madhvaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यु॒वम्। ह॒। घ॒र्मम्। मधु॑ऽमन्तम्। अत्र॑ये। अ॒पः। न। क्षोदः॑। अ॒वृ॒णी॒त॒म्। ए॒षे। तत्। वा॒म्। न॒रौ॒। अ॒श्वि॒ना॒। पश्वः॑ऽइष्टिः। रथ्या॑ऽइव। च॒क्रा। प्रति॑। य॒न्ति॒। मध्वः॑ ॥ १.१८०.४

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:180» मन्त्र:4 | अष्टक:2» अध्याय:4» वर्ग:23» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:24» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (नरौ) नायक अग्रगन्ता (अश्विना) बिजुली आदि की विद्या में व्याप्त स्त्री-पुरुषो ! (युवम्) तुम दोनों (एषे) सब ओर से इच्छा करते हुए (अत्रये) और भूत, भविष्यत्, वर्त्तमान तीनों काल में जिसको दुःख नहीं ऐसे सर्वदा सुखयुक्त रहनेवाले पुरुष के लिये (मधुमन्तम्) मधुरादि गुणयुक्त (घर्मम्) दिन और (क्षोदः) जल को (अपः) प्राणों के (न) समान (अवृणीतम्) स्वीकार करो, जिस कारण (वाम्) तुम दोनों की (पश्वइष्टिः) पशुकुल की सङ्गति, (रथ्येव) रथों में उत्तम (चक्रा) पहियों के समान (मध्वः) मधुर फलों को (प्रति, यन्ति) प्रति प्राप्त होते हैं (तत्, ह) इस कारण प्राप्त होओ ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। यदि स्त्रीपुरुष गृहाश्रम में मधुरादि रसों से युक्त पदार्थों और उत्तम पशुओं को, रथ आदि यानों को प्राप्त होवें तो उनके सब दिन सुख से जावें ॥ ४ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे नरावश्विना युवमेषेऽत्रये मधुमन्तमं धर्मं क्षोदोऽपो नाऽवृणीतं यद्वां पश्वइष्टी रथ्येव चक्रा मध्वः प्रतियन्ति तद्ध युवां प्रायातम् ॥ ४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (युवम्) युवाम् (ह) किल (घर्मम्) दिनम् (मधुमन्तम्) मधुरादिगुणयुक्तम् (अत्रये) न सन्ति त्रीणि भूतभविष्यद्वर्त्तमानकालजानि दुःखानि यस्य तस्मै सर्वदा सुखसम्पन्नाय (अपः) प्राणान् (न) इव (क्षोदः) उदकम् (अवृणीतम्) वृणीयाताम् (एषे) समन्तादिच्छवे (तत्) (वाम्) युवयोः (नरौ) नायकौ (अश्विना) विद्युदादिविद्याव्यापिनौ (पश्वइष्टिः) पशोः सङ्गतिः (रथ्येव) यथा रथेषु साधूनि (चक्रा) चक्राणि (प्रति) (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (मध्वः) मधूनि ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यदि स्त्रीपुरुषौ गृहाश्रमे मधुरादिरसयुक्तानि द्रव्याणि उत्तमान् पशून् रथादीनि यानान्यप्राप्स्यतं तर्हि तयोः सर्वाणि दिनानि सुखेनागमिष्यन् ॥ ४ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जर स्त्री-पुरुष गृहस्थाश्रमात मधुर रसांनी युक्त पदार्थांना, उत्तम पशूंना, रथ इत्यादी यानांना प्राप्त करतील तर त्यांचे दिवस सुखात जातील. ॥ ४ ॥